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कविता

और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए

शीन काफ़ निज़ाम


और कुछ देर यूँ ही शोर मचाए रखिए
आसमाँ है तो उसे सर पर उठाये रखिए

उँगलियाँ गर नहीं उट्ठें तो न उट्ठें लेकिन
कम से कम उसकी तरफ आँख उठाए रखिए

बारिशें आती हैं तूफ़ान गुज़र जाते हैं
कोहसारों की तरह पाँव जमाए रखिए

खिड़कियाँ रात को छोड़ा न करें आप खुलीं
घर की है बात तो घर में ही छिपाए रखिए

अब तो अक़्सर नज़र आ जाता है दिल आँखों में
मैं न कहता था कि पानी है दबाए रखिए

कौन जाने कि वो कब राह इधर भूल पड़े
अपनी उम्मीद की शमा को जलाए रखिए

कब से दरवाज़ों को दहलीज़ तरसती है 'निज़ाम'
कब तलक गाल को कोहनी पे टिकाये रखिए

 


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